Blog Detail

Blog

Mahaan Leader Kaise Hote Hai ?

 "हम जो कुछ भी है अपनी सोच का नतीजा है "

कितना सही कहा था उस महापुरुष ने 2600 वर्ष पहले.  उसने तो अपना घर बार छोड़  दिया. राजपाठ त्याग दिया. एक सच्चे मकसद के लिये. इन्सानियत के लिये. लहु ना बहाना पड़े  वो भी सिर्फ" रोहिणी " के जल के लिये. इतना बडा त्याग करना हमारे लिए आज केवल और केवल असंभव है. 

दुनिया में लोग दुखो से लिपटे पड़े  थे. राग, द्वेष, त्रुष्णा (लोभ लालच), हिंसा और कंजूसी जैसे विकारो से मनुष्य का व्यवहार दूषित हो गया था.  अच्छाई पर किसी का विश्वास ही नही रहा . तब उस राजकुमार को अहसास हुआ " कुछ तो है जो मुझे ढूंढना है,  जो गुम हो गया है समाज से.  और मैं हर कीमत पर उसे खोजकर ही रहूँगा ".  इस सम्यक संकल्प के साथ श्रवण बन वह घने वन की ओर चल पडा.  सत्य की खोज में. निर्वाण प्राप्त करने. 

उस समय के सारे बड़े ऋषियों से और गुरूओं से भिन्न भिन्न ज्ञान हासिल किया. पर बात ना बनी. उन सबका ज्ञान उसके लिए पर्याप्त नही था. ध्यान और योग के सभी प्रकारों में वो बड़े ही कम अवधि में निपुण हो गया.  पर इसके बावजूद वो जो ढूंढ  रहा था वो नही मिला. 

वह  रूकने वाला न था.  उसने अब कड़ी  तपस्या करने की ठान ली. घने वन में बरसो भूखा रहा,  बारीश हो या कड़ी  गर्मी ,  सर्द हो या बर्फ हो,  तूफानों  में भी वो अडिग  रहा.  शरीर कंकाल बन गया. मांस जरा भी न रहा. केवल हड्डी का ढांचा. 

और जब आंख खुली तो व्याकुलता ने उसे घेर लिया क्योकि इस बरसो की कड़ी  तपस्या से भी बात न बनी. उसके हाथ  विफलता ही आयी. 

भोजन ग्रहण कर नये हौसले के साथ , नयी उर्जा के साथ पीपल के नीचे उसने अधिष्ठान लगाया. उसके अंतर्मन ने उसे विश्वास दिलाया की अब मंजिल ज्यादा दूर नही.  चार सप्ताह तक उसने ध्यान लगाया. आनापानसती और शरीर पर आने वाली हर संवेदना पर ध्यान केंद्रित कर विपश्यना करते करते उस अंतिम सत्य तक वह पहुंच गया. निर्वाण प्राप्त हो गया. उसे परम सत्य का ज्ञान हुआ. 

ज्ञान का प्रकाश उसके चारो ओर फैला. एक सुंदर आभा उनके मुखमंडल पर छाई.  सिद्धार्थ सम्यक सम्बुद्ध बन गये.  मानव से महामानव बन गये. वे जो ढूंढ रहे थे आखिरकार  उन्हे मिल ही गया. वह था दुनिया का सच जीवन का रहस्य. जीवन जीने का "मध्यममार्ग". 
तथागत ने सिखाया -  
-  मनुष्यों के दुखो का अंत करने वाला पवित्र पथ, पंचशील.  
- मनुष्य को सम्यक जीवन दर्शाता अष्टांगमार्ग. 
- और मानव को महामानव बनानेवाला, जीवन को सुखो से भर देने वाला दस पारमिताओं का आदर्श जीवन. 

तथागत ने लाखो लोगों को इस रास्ते पर चलना सिखाया.  इस नये धर्म  के रास्ते  पर चलते चलते न जाने कितने ही मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर गये. 
जीवन के पैतालीस साल बुद्ध इस सामाजिक क्रांति का पर्चम पूरे भारत में लहराते गये.  नंगे पाव ही मीलों तक का सफर करते.  बुद्ध के चरण जहां भी पड़ते  वहां शांति और खुशहाली आ जाती. 

बुद्ध ऐसा समाज निर्माण करना चाहते थे जहा स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा हो. मनुष्य - मनुष्य में भेद ना हो. कोई किसी का गुलाम ना कहलाए. 

ऐसा समाज हो जहाँ  हम स्वयं तो आगे बढ़ते  है और दूसरों  को भी बढ़ने  में साथ देते है. किसी का भी अहित ना हो,  सबका मंगल हो यही कामना करते है. जहाँ  शांति का पर्चम ही लहराता है.  ऐसा समाज, ऐसा परिवार.  
वाह क्या सोच थी तथागत की. इसी वजह से वे सारे विश्व के लीडर  बन गये. परम आदर्श बन गये. 

ऐसा व्यक्ति  जो निर्वाण प्राप्त कर लेता है वह केवल शांति , मैत्री और करूणा का प्रचार ही समाज में करेगा. मोहम्मद  पैगंबर हो या येशु हो.  सम्राट अशोक हो या विश्वरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर.

जब हम अपने विचारो पर , मनपर विजय पा लेते है, तभी सही मायनो में हम "लीडर" बनते है. 

Social Share And Comment Section

Search the blog

Latest Posts

माँ सरस्वती - Vasant Punchami Special  

माँ सरस्वती - Vasant Punchami Special

वीणा की देवी है माँ सरस्वती करे हम सब उनका सम्मान क्यों...

प्रिय बापू ने पत्र  

प्रिय बापू ने पत्र

प्रिय बापू , नमस्कार, आपकी कुशलता चाहते हे। प्रिय बापू आप...

“ बोए पेड़ बबूल का तो आम कंहा से पाए ” :- कबीरदास  

“ बोए पेड़ बबूल का तो आम कंहा से पाए ” :- कबीरदास

बोए पेड़ बबूल का तो आम कंहा से पाए ” :- कबीरदास आप जैसा बोए...

भारत की पहचान  

भारत की पहचान

है देश भारत तेरे झंडे की शान मान सदैव बढ़ेगा यही है अरमान, ...

बड़े दिन की छुट्टी  

बड़े दिन की छुट्टी

बड़ा दिन- बड़ा दिन आओ सब मनाएं ईसा का जन्मदिन आओ सब मनाए स...