महिला सशक्तीकरण
आदिशक्ति के स्वरूप से ही इस संसार की रचना हुई है, भारतीय संस्कृत में इस मान्यता का बहुत ही प्रचलन है। वह भारतीय संस्कृति जिसके पुराणों में स्पष्टतः कहा गया है 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता' अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। वर्तमान परिदृश्य में उपरोक्त सूक्ति मानो एक किंवदंती मात्र रह गई है। जहाँ स्त्री को देवी के समान पूजा गया वहीं आज महिलाओं को अपने हक के लिए लड़ना पड़ रहा है। अपने हक और आपबीती के लिए सहारे की जरूरत पड़ रही है। आज कई सारे मुद्दे हैं जिसने भारतीय संस्कृति को झूठला दिया और हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है। सबरीमाला के मुद्दे पर एक लंबी सुनवाई के पश्चात जब सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश जारी कर दिया कि अब 10 से 50 साल की महिलाओं के लिए भी मंदिर के कपाट खोले जाएंगे, फिर भी उसका विरोध और संघर्ष जारी रहा हम अंधविश्वास के चक्कर में अपने अस्तित्व को खोते जा रहे हैं वही देश के संसद में जब महिलाओं को उचित भागीदारी की बात की गई तब भी देश संघर्ष में लगा रहा और एक लंबी उठापटक के बाद कहीं 33% आरक्षण हम उन्हें दे पाए। आज जब न्यूज़ चैनल और न्यूज़ पेपर में देखें तो बलात्कार, दहेज उत्पीड़न और यौन शोषण के मामलों ने तो देश को हिला कर रख दिया है और इन सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि हमारे माननीयों के भी बोल ऐसे हो रहे हैं, मानो वो सड़क छाप मवाली हों। देश में हम दुर्गा पूजा, नवरात्रि के समय तो उसी स्त्री स्वरूप का पूजन करते हैं परंतु फिर उसके बाद उसी की इज्जत भूल जाते हैं एक बच्ची से दुष्कर्म, वृद्ध से दुष्कर्म इन सब मामलों ने देश को शर्मसार कर दिया है और फिर हम यह कह रहे हैं कि हो सकता हो लड़की की ही गलती हो, जरा अपने अंदर भी झाँक कर तो देखो। मां बाप बेटी को यह तो समझा सकते हैं कि बेटी जमाना खराब है सम्हल के रहना, पर बेटा को नहीं बना समझाते कि, बेटा कभी किसी का भरोसा ना तोड़ना। फिर बात यहां नहीं खत्म होती देश में आज हम Right to Speech की बात करते हैं परंतु हम कभी जल्दी बेटी, पत्नी और औरत को इतना अधिकार नहीं देते कि वह अपनी बात उठा सकें और अपना हक़ माँग सके। #me_too campaign ने आजकल सोशल मीडिया में तहलका मचा के रखा हुआ है कुछ लोगों के खिलाफ औरतों ने अपनी बात कही 10 साल पुरानी, 15 साल पुरानी घटना को याद करके समाज के समक्ष रखा यह एक ऐसा कदम है जिसने देश के सोचने की दिशा को बदल दिया। परंतु वहीं कुछ घटनाएं ऐसी भी हुई है जिन्होंने देश को सोचने पर मजबूर कर दिया, जब ऐसे Social Campaign का गलत प्रयोग होने लगता है, जब लोग मात्र खुद को मजबूर दिखाई और लोगों की सहानुभूति के लिए किसी भी हद तक जाने लगे और ऐसे Social Campaign का फायदा उठाने लगे, तब वहां जाकर हमारा समाज के प्रति विश्वास डगमगाने लगता है। फिर समाज सत्यता को भी झूठला देता है। वर्तमान परिदृश्य में जिन अधिकारों की बात होती है, महिला सशक्तिकरण की जो बात होती है, अगर देखा जाए तो जिस महिला वर्ग को सशक्त करना चाहिए वह सशक्त हो ही नहीं पा रहा है। आज भी भारत के ग्रामीण अंचलों में महिलाओं के अधिकारों का हनन हो रहा है। पुरुष प्रधान आज भी वहाँ हावी है। इन सब का कारण नियम और कानून नहीं, है इनका मुख्य कारण स्वयं वो हैं, जो सामाजिक समीक्षक और समाज सुधारक बने पड़े हैं। अतः उन्हें अपने कार्यों में पारदर्शिता लाने की की आवश्यकता है जिससे देश में सशक्तिकरण का जो मुद्दा है उसे सार्थक किया जा सके और महिला सशक्तीकरण से समाज सशक्त किया जाये और देश सशक्त किया जाये।