गंगा माँ की पावन गाथा
गंगा माँ स्वर्ग की देवी
भगीरथ के तप का बल
स्वर्ग से गंगा को लाया
शिव की जटाओ ने
वेग गंगा का समाया
धीरे -धीरे चली
एक धार शिव की
जटा से निकली
गंगा माँ की कहानी
वेदों की है यह वाणी
ऋषि -मुनियों ने गाया
कर्मों का यह खजाना
भारत माता में बहे
यह अमृत की थारा ।
पुर्वजों के पिण्ड की मुक्ति
ऋषि भगीरथ के कर्मों की गाथा
गंगा माँ को भू लोक में उतारा ।
गंगा माँ की है पावन धारा
दस इन्द्रियों का हरण
मन का है यह कर्म
मुक्ति का कैसे हो यत्न
आत्मा का हो मिलन
सतसगं की गंगा
का हो अवतरण
सन्त का हो स॔ग
नाम का स्तम्भ
मन का हो उस पर चलन
आत्मा की गंगा का अवतरण
सद्गुरु कहे यह वचन
सद्भावना से हो कर्म
अंसभव भी संभव हो
ऐसा तू जान प्राणी
मानव मानवता की गंगा बहा
विश्व को अपना कुटुम्ब बना
जियो -जीने दो की है भावना
नर में ही नारायण बसा है
मानव सेवा का कर्म कमा
प्रेम की गंगा बहा
भक्ति में शक्ति का है खजाना
माँ गंगा का है यह कहना
जय गंगा माँ , जय गंगा माँ
मन को गुरु चरणों में लगाया
वाणी सन्तो की सत्संग गंगा
चित्त में