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Poetry

Ganga Maa Ki Paavan Gatha

 गंगा माँ  की पावन गाथा 

गंगा माँ स्वर्ग की देवी

भगीरथ के तप का बल

स्वर्ग से  गंगा को लाया

शिव की जटाओ  ने 

वेग गंगा का समाया 


धीरे -धीरे चली 

एक धार शिव की 

जटा से निकली

गंगा माँ की कहानी 

वेदों की है यह वाणी 

ऋषि  -मुनियों ने गाया 

कर्मों का यह खजाना  

भारत माता में बहे

यह अमृत  की थारा ।


पुर्वजों के पिण्ड की मुक्ति 

ऋषि भगीरथ के कर्मों की गाथा

गंगा माँ को भू लोक में  उतारा ।

गंगा माँ की है पावन धारा


दस इन्द्रियों का हरण

मन का है यह कर्म 

मुक्ति का कैसे हो यत्न

आत्मा का हो मिलन 

सतसगं की गंगा 

का हो अवतरण

सन्त का हो स॔ग

नाम का स्तम्भ  

मन का हो उस पर चलन

आत्मा  की गंगा का अवतरण

सद्गुरु  कहे यह वचन 

सद्भावना से हो कर्म  

अंसभव भी संभव हो

ऐसा तू जान प्राणी 


मानव मानवता की गंगा बहा 

विश्व  को अपना  कुटुम्ब  बना

जियो -जीने दो की है भावना

नर में ही नारायण बसा है

मानव  सेवा का कर्म कमा 

प्रेम की गंगा बहा 

भक्ति में शक्ति का है खजाना 

माँ गंगा का है यह कहना 

जय गंगा माँ  , जय गंगा माँ 

   

मन को गुरु  चरणों में  लगाया

वाणी  सन्तो की सत्संग गंगा  

 

चित्त में 

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