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Poetry

Pita Ke Khat .......

 पिता तुम्हारे ख़त

खिले गुलाब से
मेरे मन आँगन में
आज भी महक रहे हैं
जब भी उदासी की बारिश में
भीगती हूँ 
छतरी से तन जाते हैं 
सपना देखती हूँ तो
उड़न तश्तरी बन
मेरे संगउड़ जाते हैं 
जादुई चिराग से
मेरी सारी बातें 
समझ जाते हैं 
पिता तुम्हारे ख़त 
मेरी उर्जा का स्त्रोत हैं
संवादों का पुल हैं 
कभी भी मेरी उंगली थाम
लम्बी सैर पर निकल जातें हैं
पिता तुम्हारे ख़त
पीले पड़ कर भी 
कितने उजले हैं 
रातरानी से
आज भी महकते हैं
पिता तुम्हारे ख़त 
अनमोल 
रातरानी के
फूलों से
खतों के शब्द
ठंडी काली रातों में
एक ताजा अखबार से हैं
पिता तुम्हारे ख़त
ख़त समाचार भरें हैं
उसमे परिवार ,समाज ,देश 
एक कहानी से बन गए हैं 
इतिहास से रहते हैं
उनके भाव 
हमेशा मेरे पास/ जिन्हें 
सर्दी में रजाई सा ओढ़ती हूँ
गर्मी में पंखा झलते हैं
पिता तुम्हारे ख़त
बारिश में टपटप
वीणा तार से बजते हैं
इसके संगीत की ध्वनित तरंगें 
मेरा जीवन रथ है
इसके शब्दों को पकडे
तुम सारथी से मुझे 
सही राह दिखाते हो 
इन्हें सहेज कर रखा है 
आज भी मैंने 
कह दिया है 
अपने बच्चों से कि यह
मेरी धरोहर हैं 
जो आज भी मेरा
विश्वास है /कि
मेरे पिता मेरे जीवन का
सारांश हैं
बहुत खास है
पिता तुम्हारे ख़त 

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