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Poetry

Aurte aur Itihaas

        अब तक चीखें दबा दी गई, जिनके

दर्द को महसूस ही नहीं किया गया

कहीं दर्ज नहीं थी हमारी सिसकारियाँ
 
अंत नहीं था तकलीफों का
 
फिर भी निशां नहीं था इतिहास में
 
जहाँ कोई चीख न सुनी गई हो
 
फिर भी सुनाई दे जायें
 
बस वही निशान हमारे थे
 
अल्फाजों के बीच की चुप्पी
 
हमारी थी, रिश्तों में दरकती
 
उलझनें हमारी थी
 
पर फिर भी निशां नहीं था इतिहास में
 
वीरों की जीत के पीछे दुआयें हमारी थी
 
पर जीत के बाद कहीं दर्ज नहीं थे हमारी जज्बात
 
हर काम में आधे से ज्यादा के हिस्सेदार
 
थी हम औरतें
 
पर इतिहास के स्वर्णाक्षरों में कहीं न थीं हम
 
खुद इतिहास बन कर भी स्वयं को
 
शामिल नहीं कर पायी पुरूषों के इस इतिहास में
 
इतिहास में जो दर्ज न हो पायी
 
वो हमारी चीखें थीं
 
इतिहास के पृष्ठों में जो सन्नाटे अंकित थे
 
वे हमारी पीठ पर पड़े निशान थे
 
इतिहास के जिन पन्नों को काला कहते हैं
 
वे केवल हमारी ही कहानी कहते हैं।

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