" निजीकरण की राह पर जाती शिक्षा में गुणवत्ता :एक चुनौती "
भारत में प्रारंभिक शिक्षा सभी 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों तक पहुंचाने के लिए राइट टू एजुकेशन एक्ट लागू किया जा चुका है ।परंतु, वह लागू मात्र किताब के पन्ने में है ,संविधान के पन्ने में है। आज 6 से 14 वर्ष के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। सरकार अगर सोचती है,ऐसा मानती है कि हम सब को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं ,तो फिर क्यों प्राइवेट विद्यालय खुले हैं उन्हें क्यों नहीं बंद कर दिया जाता है ?जो हर साल करोड़ों की थी वसूलते हैं। करोड़ों के महंगी पुस्तकों से बच्चों को शिक्षा देने का कार्य करते हैं एवं हमारे तथाकथित कुलीन वर्ग ,सांसद ,विधायक मंत्री एवं मध्यमवर्गीय लोग चुका कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं ।एक तरफ सरकार शिक्षकों की बहाली रोक कर नियोजन एवं कांटेक्ट पर शिक्षकों की बहाली कर रही है। दूसरी ओर प्राइवेट विद्यालयों को बढ़ावा दिया जा रहा है क्या यह नहीं दर्शाता है कि धीरे धीरे सभी सरकारी विद्यालयों को बंद करने की और सरकार अगसर है ।अगर कोई शिक्षक उचित वेतन नहीं पाए, मान सम्मान नहीं पाए, उनका तथा उनके बाल बच्चों का पेट नहीं भरपायये तो वह कैसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देगा और वह क्यों B.Ed एवं M.Ed की डिग्रियां ले गा वह भी क्यों नहीं ?आईएएस की तैयारी करेगा ,लोक सेवा आयोग की परीक्षा में बैठेगा? कहीं ना कहीं लुभाने के लिए ही सही शिक्षकों को उचित वेतन एवं मान सम्मान देना होगा, शिक्षा का व्यवसायीकरण रोकना होगा ,प्राइवेट विद्यालयों पर लगाम लगानी होगी । वरना हम इस मुगालते में रहेंगे कि अपने बच्चे को तो अच्छे विद्यालय में पढ़ा रहे हैं क्योंकि वह मंहगे जो हैं बाकी की पढ़ाई से हमें क्या लेना देना है , तो हमारा मानव संसाधन , संसाधन नहीं बल्कि देश के लिए बोझ बन जाएगा एवं राइट टू एजुकेशन एक्ट के उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो सकेंगे।
वर्तमान समय में प्रारंभिक शिक्षा अपने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहा है. सरकारी विद्यालय मात्र पाकशाला बन बैठे हैं स्थिति कमोबेश सरकारी हॉस्पिटलों की हो गई है ।प्राइवेट में डॉक्टर की कमाई जिस प्रकार सरकारी डॉक्टर से कई गुना ज्यादा होती हैं ।वही स्थिति शिक्षकों के साथ होने जा रही है दरअसल आज एक अच्छे शिक्षक को शिक्षक के रूप में विद्यालयों में कायरत होने के लिए एकेडमिक डिग्री के पश्चात भी TET, B.Ed M.Ed इत्यादि डिग्रियों की जरूरत होती है .अगर इन डिग्रियों को चुराकर नहीं बल्कि वास्तव में अपने दम पर पढ़कर हासिल किया जाए एवं उसका मूल्य नहीं मिले, सरकार उसे अत्यल्प वेतन पर नियोजन करें तो जाहिर सी बात है उनके मन में असंतोष उत्पन्न होगा ।फिर भला कोई व्यक्ति इतनी सारी डिग्रियां हासिल करना क्यों चाहेगा? इतना क्यों पढ़ना चाहेगा? वह शिक्षा शास्त्री क्यों बनना चाहेगा?
वह यूपीएससी एवं राज्य लोक सेवा आयोग के परीक्षाओं में बैठकर प्रशासन में क्यों नहीं जाना चाहेगा ?जहां रुतबा पैसा सब कुछ होता है यही कारण है अच्छे लोग यानी वाकई पढ़कर डिग्रियां हासिल करने वाले लोग शिक्षा एवं शिक्षक पद से विमुख होने लगे हैं ।भविष्य में स्थिति और भी गंभीर होने वाली है ।अगर सरकार इस पर ध्यान नहीं देगी तो जल्द ही रही सही कसर भी पूरी हो जाएगी हाल सरकारी हॉस्पिटलों की तरह हो जाएगा