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Poetry

Maayke Ki Chitthi

 मायके से चिट्ठी आयी है बाबा का संदेस लायी है

बिटिया माँ आजकल ठीक नहीं रहती
थक जाती है जल्दी पर नहीं कहती
घुटने जवाब दे रहे हैं अब उसके
आज़माती रहती है देसी नुस्ख़े
तुम आ जाओ तो शायद तुमसे कहले
मना करता हूँ फिर भी उठ जाती है मुझसे पहले
मायके से चिट्ठी आयी है बाबा का संदेस लायी है
भाई आजकल अपने में ही मस्त रहता है
बीवी बच्चों के कामों में व्यस्त रहता है
घर भर के खाने का इंतज़ाम करता है
 शायद ज़रूरत से ज़्यादा काम करता है
तुम आकर थोड़ा उसे भी समझादो
कम में भी कैसे ख़ुश रहें उसको सिखा दो
मायके से चिट्ठी आयी है बाबा का संदेस लायी है
भाभी भी उलझी रहती है काम में दिन भर
बच्चें भी चैन नहीं लेने  देते उसे पल भर
उसकी ग़लती नहीं वो हमारी सेवा करना चाहती है
पर घर बाहर के कामों से समय कँहा बचा पाती है
थोड़ा हाथ तुम आओ तो उसका भी बँटा देना
घर बाहर का सामंजस्य उसको भी सिखा देना
मायके से चिट्ठी आयी है बाबा का संदेस लायी है
मैं ठीक हूँ बस ये दिल की बीमारी परेशान कर रही है
भगवान के घर जाने की राह आसान कर रही है
दिल के दर्द को मैं बाँट नहीं पाता हूँ
आजकल ख़ाली समय काट नहीं पाता हूँ
तुम आओगी तो मै भी दो पल मुस्कुरा लूँगा
उन्ही पलों के सहारे बाक़ी की ज़िंदगी बिता लूँगा
मायके से चिट्ठी आयी है बाबा का संदेस लायी है
 
Summary:-
 इस कविता में ऐसी ही एक लड़की की कथा है जिसके पिता ने उसे आने के लिए चिट्ठी लिखते हैं और उसे अपनी और घर की दशा के बारे में अवगत कराते हैं
 हमारे समाज में अभी भी लड़कियाँ परिवार के लिए सेतु का काम करती हैं माँ बाप के दुःख तकलीफ़ों को समझती हैं व परिवार में सामंजस्य बिठाने का काम करती हैं इस कविता में भी इस लड़की के पिता उसे अपने मन की बात बता रहे हैं और आग्रह कर रहे हैं की वो घर आ कर सब ठीक करने में उनकी मदद करे

 

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